गांव के छोटे से स्कूल में रमेश और सुरेश साथ-साथ पढ़ते थे। दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। स्कूल के बाद वे खेतों में खेलते, तालाब में तैरते और पेड़ों पर चढ़कर आम तोड़ते। उनके बीच की दोस्ती इतनी गहरी थी कि गांव वाले भी उन्हें 'राम-लखन' कहकर बुलाते थे।
एक दिन स्कूल में प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। सभी बच्चों को एक निबंध लिखना था। रमेश ने कड़ी मेहनत की और अपना सर्वश्रेष्ठ निबंध लिखा। सुरेश ने भी पूरा प्रयास किया, लेकिन उसका निबंध उतना अच्छा नहीं बन पाया। जब परिणाम घोषित हुआ, तो रमेश को प्रथम स्थान मिला। सुरेश खुश तो हुआ, लेकिन कहीं न कहीं उसके मन में थोड़ी सी जलन भी थी।
उस रात सुरेश सो नहीं सका। वह सोचता रहा कि कैसे रमेश ने उसे पीछे छोड़ दिया। अगली सुबह जब दोनों स्कूल जा रहे थे, तो सुरेश ने देखा कि रमेश का चेहरा मुरझाया हुआ है। उसने पूछा, "क्या हुआ रमेश, तू ठीक तो है?"
रमेश ने बताया कि उसके पिता बीमार हैं और इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। सुरेश को अपनी जलन पर शर्मिंदगी महसूस हुई। उसने तुरंत अपने गुल्लक को तोड़ा और सारी बचत रमेश को दे दी। रमेश की आँखों में आँसू आ गए और उसने सुरेश को गले से लगा लिया।
इस घटना के बाद सुरेश ने समझा कि सच्ची दोस्ती में ईर्ष्या के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। दोनों दोस्तों ने मिलकर रमेश के पिता का इलाज करवाया और वे जल्दी ही स्वस्थ हो गए।
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समय बीतता गया और दोनों दोस्त बड़े हो गए। रमेश एक सफल डॉक्टर बन गया और सुरेश एक प्रसिद्ध वकील। वे अब भी एक-दूसरे के साथ खड़े रहते, हर सुख-दुख में एक-दूसरे का साथ देते। उनकी दोस्ती आज भी उतनी ही मजबूत थी, जितनी बचपन में थी।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्ची दोस्ती में प्यार, सहयोग और समर्पण होना चाहिए। ईर्ष्या और द्वेष के लिए उसमें कोई जगह नहीं होनी चाहिए। यही सच्ची दोस्ती का सार है।
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