यह कहानी एक ऐसे नौजवान की है जिसने कभी भी हिम्मत नहीं हारी। उस नौजवान को तरह-तरह की पुस्तकें पढ़ने का शौक था। अपने छात्र जीवन में वह अक्सर अपने मित्रों से पुस्तके मांग कर पढ़ाई किया करता। दरअसल पुस्तकें खरीदने के लिए उसके पास पैसे नहीं होते थे क्योंकि उसका परिवार बहुत गरीब था। कई बार ऐसा भी हुआ उसने भूखे रहकर पढ़ाई की और भोजन का पैसा बचाकर पुस्तके खरीदी। यूँ हीं वह हर वर्ष क्लास में अच्छे नंबरों से पास होता था।
एक दिन उस नौजवान ने मन में सोचा- पैसा तो पास में है नहीं अब आगे की पढ़ाई कैसे होगी? तभी उसके मन में विचार आया । उसने अपनी समस्या अपने एक मित्र को बताई। मित्र ने कहा- जूनागढ़ के राजा अच्छे नंबरों से पास होने वाले छात्रों को अपने खर्चे से विदेशों में पढ़ाई के लिए भेजते हैं ।
उस नौजवान के मित्र के पिता ने यह बात जूनागढ़ के राजा को बताई तो उन्होंने तुरंत उस नौजवान को बुलाया और कहा तुम उच्च शिक्षा के लिए लंदन जाओ तुम्हारी पढ़ाई की व्यवस्था हो जाएगी। वह नौजवान खुशी-खुशी लंदन जाकर पढ़ाई करने लगा। तीन-चार माह तक तो राजघराने की सहायता समय-समय पर मिलती रही लेकिन उसके बाद सहायता मिलना बंद हो गई। अब नौजवान के सामने दो समस्या थी एक तो पेट भरना और दूसरा पढ़ाई का खर्च। फिर भी नौजवान ने हिम्मत नहीं हारी। इधर-उधर छोटा-मोटा काम करके कुछ पैसों का जुगाड़ कर लिया करता ।
नौजवान पैसों की तंगी के कारण सादे कपड़े पहनता, अपने जूतों पर स्वयं पॉलिश किया करता, कपड़े भी स्वयं धोया करता। इस प्रकार जो बचत हुआ करता उससे वह पुस्तके खरीदा करता। एक बार उसे अर्थशास्त्र की एक पुस्तक की सख्त जरूरत थी और वह पुस्तक इतनी मांग थी कि उसके बजट से बाहर थी। बिना पुस्तक के तो पढ़ाई संभव नहीं थी इसलिए वह एक पुरानी पुस्तकों की दुकान पर पहुंचा। वहां अर्थशास्त्र की पुस्तक देखकर वह मन ही मन बड़ा प्रसन्न हुआ । 10 पाउंड देकर उसने वह पुस्तक खरीद ली। पुस्तक खरीद सीधे एक सस्ते होटल में पहुंचा । खाने की मेज पर बैठकर पुस्तक पढ़ने लगा। पुस्तक से नजरें हटाकर जैसे ही उसने मेज की तरफ देखा तो बैरा मुस्कुराते हुए भोजन की प्लेट लिए खड़ा था ।
तभी नौजवान को ध्यान आया कि जेब तो खाली है, सारे पैसों की तो पुस्तकें खरीद ली है। अब क्या किया जाए।फिर उसने बात बना कर दबी मुस्कान के साथ कहा -‘क्षमा करना मेरे भाई.. मुझे ध्यान नहीं रहा। आज मेरा व्रत है।’ यह कहकर उस नौजवान की आंखें डबडबा आई । उसने अपनी जिंदगी में पहली बार झूठ बोला था । होटल से निकलकर वह अपने रूम पर पहुंचे और पूरे 10 दिन केवल ब्रेड और गुड़ खाकर गुजारा करता रहा क्योंकि 10 दिन की भोजन के पैसे तो पुस्तक खरीदने में खर्च हो गए थे। तो दोस्तों अब तो आप जरूर जानना चाहेंगे की वह नौजवान कौन था ? यह नौजवान था- ‘भीमराव अंबेडकर’। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारी । परिस्थिति कैसी भी हो उन्होंने अपने हौसले बुलंद रखें। आगे चलकर जिसने हमारे देश के संविधान की रचना की हमारे देश के गौरव में इतिहास में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।
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